Mangal Dosh Puja in Ujjain (मंगल दोष पूजा उज्जैन)
मंगल दोष एक ज्योतिषीय दोष है, जिसमें मंगल ग्रह के अनुकूल योग में जन्म लेने से किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल दोष बन जाता है। इसे मान्यता है कि ऐसा दोष व्यक्ति के विवाह और पारिवारिक जीवन में समस्याओं का कारण बन सकता है। उज्जैन, मध्यप्रदेश की शहरी धारोहर में स्थित, आध्यात्मिक शक्तियों की गहरी गाथाओं से ओतप्रोत है। यहाँ कई प्रमुख पूजाएँ आयोजित की जाती हैं, जो मान्यताओं और धार्मिक आदर्शों के साथ-साथ आध्यात्मिक सफलता की दिशा में मदद करती हैं। इस धार्मिक नगर में एक विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसके माध्यम से मंगल दोष को निवारण करने का प्रयास किया जाता है। पंडित जी एक विशेषज्ञ पंडित हैं, जो मंगल दोष पूजा को उज्जैन में आयोजित करते हैं। उनकी विशेष ज्ञान और आध्यात्मिक अनुभव से वे लोगों की मदद करते हैं जिनकी कुंडली में मंगल दोष हो रहा है और उन्हें इस दोष की शांति के लिए यह पूजा करवानी चाहिए।
Mangal Dosh Puja in Ujjain
मंगल दोष एक ज्योतिषीय दोष है जो तब होता है जब मंगल ग्रह किसी व्यक्ति की कुंडली में अशुभ स्थानों में स्थित होता है। मंगल को एक क्रूर ग्रह माना जाता है, और इस दोष के परिणामस्वरूप व्यक्ति को जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। इन कठिनाइयों में विवाह में देरी, पारिवारिक कलह, स्वास्थ्य समस्याएं और आर्थिक नुकसान शामिल हो सकते हैं।
मंगल दोष निवारण पूजा एक अनुष्ठान है जो इस दोष के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए किया जाता है। यह पूजा उज्जैन में मंगलनाथ मंदिर में की जाती है, जो मंगल ग्रह को समर्पित है। इस मंदिर में, मंगल दोष निवारण पूजा को पंडित जी जैसे अनुभवी ज्योतिषियों द्वारा किया जाता है।
मंगल दोष ज्योतिष शास्त्र में एक महत्वपूर्ण प्रकार की दोष होती है, जिसे किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल ग्रह की दशा और स्थिति के कारण पैदा होती है। मंगल दोष के बारे में मान्यता है कि यह दोष व्यक्ति के विवाहित जीवन में विघ्न और समस्याएँ ला सकता है, जैसे कि विवाह में देरी, संबंधों में विवाद, स्वास्थ्य समस्याएँ आदि। इसलिए व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति के लिए इसे दूर करना महत्वपूर्ण होता है। मंगल दोष निवारण पूजा को एक बार करने से इस दोष के सभी नकारात्मक प्रभावों को दूर नहीं किया जा सकता है। इस दोष से पूरी तरह छुटकारा पाने के लिए, इसे नियमित रूप से करना चाहिए।
Mangal Dosh Puja Ujjain
धार्मिकता और आध्यात्मिकता भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण धारा है, जो लोगों के जीवन में आत्मा की शांति और सुख-शांति की खोज में मदद करती है। उज्जैन, मध्यप्रदेश की पवित्र धारा में स्थित, एक ऐसा शहर है जिसमें धार्मिकता की गहरी अनुष्ठान और ध्यान की भावना दिखती है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार की पूजाएँ और अध्यात्मिक क्रियाएँ होती हैं, जो विभिन्न दोषों को दूर करने और आध्यात्मिक सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से की जाती हैं। इसी भावना के साथ उज्जैन में पंडित जी द्वारा आयोजित की जाने वाली मंगल दोष पूजा का आयोजन होता है।
पंडित जी एक विशेषज्ञ पंडित हैं, जिनका योगदान उज्जैन में मंगल दोष पूजा के आयोजन में होता है। उनका विशेष ज्ञान और धार्मिक आदर्शों का पालन करते हुए, वे व्यक्तिगत और पारिवारिक समस्याओं के समाधान के लिए मंगल दोष पूजा की आयोजन करते हैं। उनका आदर्श और आध्यात्मिक संवादनशीलता विशेष रूप से उन लोगों के लिए मार्गदर्शन करते हैं, जिनकी कुंडली में मंगल दोष होता है और जिन्हें इसकी शांति की आवश्यकता होती है।
मंगल दोष पूजा की महत्वपूर्णता: मंगल दोष पूजा को करने से व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार के आशीर्वाद मिल सकते हैं। इस पूजा के माध्यम से निम्नलिखित कुछ फायदे प्राप्त किए जा सकते हैं:
1. पारिवारिक सुख-शांति: मंगल दोष पूजा के द्वारा पारिवारिक जीवन में सुख और शांति की प्राप्ति की जा सकती है। विवाहित जीवन में समस्याएँ और विवादों के समाधान के लिए यह पूजा उपयोगी हो सकती है।
2. स्वास्थ्य में सुधार: मंगल दोष के कारण स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। पूजा के माध्यम से यह समस्याएँ दूर हो सकती हैं और स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
3. करियर में वृद्धि: मंगल दोष के कारण करियर में अवसाद और समस्याएँ हो सकती हैं। पूजा के द्वारा करियर में सफलता और वृद्धि की प्राप्ति की जा सकती है।
4. विवाह में सुख-शांति: विवाह के लिए चुनौतियों की अवश्यकता हो सकती है। मंगल दोष पूजा के माध्यम से विवाह की दिशा में सुख-शांति की प्राप्ति की जा सकती है।
5. आत्मविश्वास में वृद्धि: मंगल दोष के कारण आत्मविश्वास में कमी हो सकती है। पूजा के द्वारा आत्मविश्वास में वृद्धि हो सकती है और व्यक्ति अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल हो सकता है।
मंगल भात पूजा: उज्जैन में पंडित जी द्वारा आयोजित की जाने वाली मंगल दोष पूजा के अलावा, वे ‘मंगल भात पूजा’ का आयोजन भी करते हैं। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य मंगल ग्रह के अनुकूल योगों को बढ़ावा देना होता है जो व्यक्ति की कुंडली में होते हैं। यह पूजा विवाह में सुख-शांति, स्वास्थ्य में सुधार और करियर में वृद्धि के लिए उपयोगी होती है।
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FAQ : आपके द्वारा पूछे गए कुछ प्रश्न
मांगलिक दोष या कुज दोष क्या है?
यदि किसी पत्रिका के लग्न भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव, द्वादश भाव में यदि मंगल स्थित हो तो कुंडली में मंगल दोष होता है।
कुंडली में कई प्रकार के दोष बताए गए हैं, इन्हीं दोषों में से एक है मांगलिक दोष, यह दोष जिस व्यक्ति की कुंडली में होता है वह मांगलिक कहलाता है जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के 1, 4, 7, 9, 12वें स्थान या भाव में मंगल स्थित हो तो वह व्यक्ति मांगलिक होता है।
आज भी जब किसी स्त्री या पुरुष के विवाह के लिए कुंडली मिलान किया जाता है तो सबसे पहले देखा जाता है कि वह मांगलिक है या नहीं, ज्योतिष के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मांगलिक है तो उसकी शादी किसी मांगलिक से ही की जानी चाहिए, इसके पीछे धारणाएं बनाई गई हैं।
वैदिक ज्योतिष में मंगल देव हमारे रिश्तों पर, मस्तिष्क पर आधिपत्य रखते हैं। नाड़ी ज्योतिष के अनुसार महिला जातक की पत्रिका में मंगल देव पति का प्रतिनिधि करते हैं। प्रत्येक पत्रिका के लिए मंगल की स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। मंगल अर्थात कुज के द्वारा ही बनता है मंगल दोष।
जब भी किसी जातक/जातिका की पत्रिका में मंगल विशेष भावों से जुड़े हों या उस पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं तो वह कुज दोष से प्रभावित होगा। कुज दोष का सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव विवाह, वैवाहिक जीवन पर पड़ता है। विवाह में बाधा, वैवाहिक जीवन में कलह आदि इसके सामान्य प्रभाव है।
कभी-कभी इसका प्रभाव इतना प्रबल होता है कि वैवाहिक जीवन में विच्छेदन की स्थिति भी आ जाती है। शास्त्रों में ऐसा वर्णित हैं मांगलिक व्यक्ति का विवाह समान भाव मांगलिक व्यक्ति से ही होना उत्तम होता है। जिससे इस दोष का शमन होता है। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो समस्याओ का सामना करना पड़ता है।
ज्योतिष के अनुसार मांगलिक लोगों पर मंगल ग्रह का विशेष प्रभाव होता है, यदि मांगलिक शुभ हो तो वह मांगलिक लोगों को मालमाल बना देता है। मांगलिक व्यक्ति अपने जीवनसाथी से प्रेम-प्रसंग के संबंध में कुछ विशेष इच्छाएं रखते हैं, जिन्हें कोई मांगलिक जीवनसाथी ही पूरा कर सकता है इसी वजह से मंगली लोगों का विवाह किसी मंगली से ही किया जाता है।
कौन होते हैं मांगलिक?
कुंडली में कई प्रकार के दोष बताए गए हैं, इन्हीं दोषों में से एक है मांगलिक दोष, यह दोष जिस व्यक्ति की कुंडली में होता है वह मांगलिक कहलाता है जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के 1, 4, 7, 9, 12वें स्थान या भाव में मंगल स्थित हो तो वह व्यक्ति मांगलिक होता है।
मंगल दोष, मांगलिक दोष क्या है?
Mangal Dosh Puja in Ujjain
कुंडली में कई प्रकार के दोष बताए गए हैं, इन्हीं दोषों में से एक है मांगलिक दोष, यह दोष जिस व्यक्ति की कुंडली में होता है वह मांगलिक कहलाता है जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के 1, 4, 7, 9, 12वें स्थान या भाव में मंगल स्थित हो तो वह व्यक्ति मांगलिक होता है।
आज भी जब किसी स्त्री या पुरुष के विवाह के लिए कुंडली मिलान किया जाता है तो सबसे पहले देखा जाता है कि वह मांगलिक है या नहीं, ज्योतिष के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मांगलिक है तो उसकी शादी किसी मांगलिक से ही की जानी चाहिए, इसके पीछे धारणाएं बनाई गई हैं।
वैदिक ज्योतिष में मंगल देव हमारे रिश्तों पर, मस्तिष्क पर आधिपत्य रखते हैं। नाड़ी ज्योतिष के अनुसार महिला जातक की पत्रिका में मंगल देव पति का प्रतिनिधि करते हैं। प्रत्येक पत्रिका के लिए मंगल की स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। मंगल अर्थात कुज के द्वारा ही बनता है मंगल दोष।
जब भी किसी जातक/जातिका की पत्रिका में मंगल विशेष भावों से जुड़े हों या उस पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं तो वह कुज दोष से प्रभावित होगा। कुज दोष का सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव विवाह, वैवाहिक जीवन पर पड़ता है। विवाह में बाधा, वैवाहिक जीवन में कलह आदि इसके सामान्य प्रभाव है।
कभी-कभी इसका प्रभाव इतना प्रबल होता है कि वैवाहिक जीवन में विच्छेदन की स्थिति भी आ जाती है। शास्त्रों में ऐसा वर्णित हैं मांगलिक व्यक्ति का विवाह समान भाव मांगलिक व्यक्ति से ही होना उत्तम होता है। जिससे इस दोष का शमन होता है। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो समस्याओ का सामना करना पड़ता है।
ज्योतिष के अनुसार मांगलिक लोगों पर मंगल ग्रह का विशेष प्रभाव होता है, यदि मांगलिक शुभ हो तो वह मांगलिक लोगों को मालमाल बना देता है। मांगलिक व्यक्ति अपने जीवनसाथी से प्रेम-प्रसंग के संबंध में कुछ विशेष इच्छाएं रखते हैं, जिन्हें कोई मांगलिक जीवनसाथी ही पूरा कर सकता है इसी वजह से मंगली लोगों का विवाह किसी मंगली से ही किया जाता है।
मांगलिक दोष या कुज दोष क्या है?
यदि किसी पत्रिका के लग्न भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव, द्वादश भाव में यदि मंगल स्थित हो तो कुंडली में मंगल दोष होता है।
कौन होते हैं मांगलिक?
कुंडली में कई प्रकार के दोष बताए गए हैं, इन्हीं दोषों में से एक है मांगलिक दोष, यह दोष जिस व्यक्ति की कुंडली में होता है वह मांगलिक कहलाता है जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के 1, 4, 7, 9, 12वें स्थान या भाव में मंगल स्थित हो तो वह व्यक्ति मांगलिक होता है।
मांगलिक लोगों की खास बातें
मांगलिक होने का विशेष गुण यह होता है कि मांगलिक कुंडली वाला व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को पूर्णनिष्ठा से निभाता है। कठिन से कठिन कार्य वह समय से पूर्व ही कर लेते हैं, नेतृत्व की क्षमता, उनमें जन्मजात होती है, ये लोग जल्दी किसी से घुलते-मिलते नहीं परन्तु जब मिलते हैं तो पूर्णतः संबंध को निभाते हैं, अति महत्वकांक्षी होने से इनके स्वभाव में क्रोध पाया जाता है परन्तु यह बहुत दयालु, क्षमा करने वाले तथा मानवतावादी होते हैं, गलत के आगे झुकना इनको पसंद नहीं होता और खुद भी गलती नहीं करते।
ये लोग उच्च पद, व्यवसायी, अभिभावक, तांत्रिक, राजनीतिज्ञ, डॉक्टर, इंजीनियर सभी क्षेत्रों में विशेष योग्यता प्राप्त करते हैं।
क्यों नहीं मिलने चाहिए 36 गुण?
कुंडली के हिसाब से शादी करने वाले लोग लड़के और लड़की का गुण मिलान करते हैं। कुल 36 गुण होते हैं और इसमें से जितने गुण मिल जाएं उतना अच्छा माना जाता है। शादी के लिए कम से कम 18 गुण मिलना जरूरी होता है इससे कम गुण मिलना या 36 गुण मिलना सही नहीं माना जाता क्योंकि भगवान राम और माता सीता के 36 गुण मिले थे। लेकिन शादी के बाद सीताजी को रामजी का साथ बहुत कम मिला, उनका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहा, इसलिए मेरा मानना है कि अति हमेशा बहुत बुरी होती है चाहे वह गुण का मिलना ही क्यों न हो।
क्या मांगलिक की शादी गैर मांगलिक से हो सकती है?
मांगलिक लड़के और लड़की की शादी को लेकर समाज में बहुत सारे अंधविश्वास फैले हुए हैं। इसलिए लड़का या लड़की अगर मांगलिक हो तो माता-पिता के लिए उनकी शादी परेशानी का सबब बन जाती है। लेकिन आचार्य सचिन साबेसाची का कहना है कि लड़का और लड़की अगर मांगलिक हैं तो राहु, केतु और शनि की स्थिति पर निर्भर करता है कि शादी गैर मांगलिक से होगी या नहीं। लड़का अगर मांगलिक है तो उसकी शादी उस गैर मांगलिक लड़की से हो सकती है जिसके राहु, केतु और शनि दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें और बाहरवें भाव में बैठे हों, लेकिन अगर राहु, केतू और शनि इन भावों में नहीं हैं तो उसकी शादी मांगलिक से नहीं हो सकती। यूं तो ऐसे जातक का उपाय तो कुछ नहीं है लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि 28 साल के बाद मंगल का प्रभाव खत्म हो जाता है लेकिन मेरे गुरु कहते हैं कि यह ताउम्र रहता है।
मंगल भात पूजा क्या है?
मंगल मेष एवं वृश्चिक राशि के स्वामी हैं, इसलिए जिन व्यक्तिओ बहुत क्रोध आता है या मन ज्यादा अशांत रहता है उसका कारण मंगल ग्रह की उग्रता माना जाता और यह मंगल भात पूजा कुंडली में विद्धमान मंगल ग्रह की उग्रता को कम करने के लिए की जाती है, यह पूजा उज्जैन के मंगलनाथ मंदिर में नित्य होती है, जिसका पुण्य लाभ समस्त भक्तजन प्राप्त करते है।
मंगल भात पूजा किसके द्वारा करवाई जानी चाहिए ?
मंगल भात पूजा पूरी तरह से आपके जीवन से जुडी हुयी है इसलिए इस पूजा को विशिस्ट, सात्विक और विद्वान ब्राह्मण द्वारा गंभीरता पूर्वक करवानी चाहिए, पंडित श्री रमाकांत चौबे जी को इस पूजा का महत्त्व और विधि भली भांति से ज्ञात है और अभी तक इनके द्वारा की गयी पूजा गयी पूजा भगवान शिव की कृपा से सदैव सफल हुयी है।
मंगल भात पूजा क्यों करवानी चाहिए?
कुछ व्यक्ति ऐसे होते है जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है उसी को ज्योतिष की भाषा में मंगल दोष कहते है, मंगल दोष कुंडली के किसी भी घर में स्थित अशुभ मंगल के द्वारा बनाए जाने वाले दोष को कहते हैं, जो कुंडली में अपनी स्थिति और बल के चलते जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं उत्पन्न कर सकता है, तो वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए मंगलनाथ मंदिर में पूजा-पाठ अवश्य करवाए, जैसा की उज्जैन को पुराणों में मंगल की जननी कहा जाता है इस लिए मंगल दोष को निवारण के लिए मंगल भात पूजा को उज्जैन में ही करवाने से अभीस्ट पुण्य एवं फल प्राप्त होता है.
मंगल भात पूजा किसको करवानी चाहिए ?
वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि किसी जातक के जन्म चक्र के पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें घर में मंगल हो तो ऐसी स्थिति में पैदा हुआ जातक मांगलिक कहा जाता है अथवा इसी को मंगल दोष भी कहते है. यह स्थिति विवाह के लिए अत्यंत अशुभ मानी जाती है, ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि में एक मांगलिक को दूसरे मांगलिक से ही विवाह करना चाहिए. अर्थात यदि वर और वधु दोनों ही मांगलिक होते है तो दोनों के मंगल दोष एक दूसरे से के योग से समाप्त हो जाते है. किन्तु अगर ऐसा किसी कारण से ज्ञात नहीं हो पाता है, और किसी एक की कुंडली में मंगल दोष हो तो मंगल भात पूजा अवस्य करवा लेनी चाहिए. मंगल दोष एक ऐसी विचित्र स्थिति है, जो जिस किसी भी जातक की कुंडली में बन जाये तो उसे बड़ी ही अजीबोगरीब परिस्थिति का सामना करना पड़ता है जैसे संबंधो में तनाव व बिखराव, घर में कोई अनहोनी व अप्रिय घटना, कार्य में बेवजह बाधा और असुविधा तथा किसी भी प्रकार की क्षति और दंपत्ति की असामायिक मृत्यु का कारण मांगलिक दोष को माना जाता है. मूल रूप से मंगल की प्रकृति के अनुसार ऐसा ग्रह योग हानिकारक प्रभाव दिखाता है, आपको वैदिक पूजा-प्रक्रिया के द्वारा इसकी भीषणता को नियंत्रित करने के लिए उज्जैन के मंगलनाथ मंदिर में यह पूजा करवानी चाहिए।
मंगल भात पूजा की कथा:-
शास्त्रों में मंगल को भगवान शिव के शरीर से क्रोध के कारण निकले पशीने से उत्पन्न माना जाता है, इसकी कथा इस प्रकार से है, भगवान शिव वरदान देने में बहुत ही उदार है, जिसने जो माँगा उसे वो दे दिया लेकिन जब कोई उनके दिए वरदान का दुरूपयोग करता है जो प्राणिओ के कल्याण के भगवान् शिव स्वयं उसका संघार भी करते है, स्कन्ध पुराण के अनुसार उज्जैन नगरी में अंधकासुर नामक दैत्य ने भगवान् शिव की अडिग तपस्या की और ये वरदान प्राप्त किया कि मेरा रक्त भूमि पर गिरे तो मेरे जैसे ही दैत्य उत्पन्न हों जाए। भगवान शिव तो है ही अवढरदानी दे दिया वरदान, परन्तु इस वरदान से अंधकासुर ने पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मचा दी..सभी देवता, ऋषियों, मुनियो और मनुष्यो का वध करना शुरू कर दिया…सभी देवगढ़, ऋषि-मुनि एवं मनुष्य भगवान् शिव के पास गए और सभी ने ये प्रार्थना की- आप ने अंधकासुर को जो वरदान दिया है, उसका निवारण करे, इसके बाद भगवान शिव जी ने स्वयं अंधकासुर से युद्ध करने और उसका वध का निर्णय लिया । भगवान् शिव और अंधकासुर के बीच आकाश में भीषण युद्ध कई वर्षों तक चला ।
युद्ध करते समय भगवान् शिव के ललाट से पसीने कि एक बून्द भूमि के गर्भ पर गिरी, वह बून्द पृथ्वी पर मंगलनाथ की भूमि पर गिरी जिससे भूमि के गर्भ से शिव पिंडी की उत्पत्ति हुई और इसी को बाद में मंगलनाथ के नाम से प्रसिद्दि प्राप्त हुयी। युद्ध के समय भगवान् शिव का त्रिसूल अंधकासुर को लगा, तब जो रक्त की बुँदे आकाश में से भूमि के गर्भ पर शिव पुत्र भगवान् मंगल पर गिरने लगी, तो भगवान् मंगल अंगार स्वरूप के हो गए । अंगार स्वरूप के होने से रक्त की बूँदें भस्म हो गयीं और भगवान् शिव के द्वारा अंधकासुर का वध हो गया । भगवान् शिव मंगलनाथ से प्रसन्न होकर २१ विभागों के अधिपति एवं नवग्रहों में से एक गृह की उपाधि दी ।
शिव पुत्र मंगल उग्र अंगारक स्वभाव के हो गए.. तब ब्रम्हाजी, ऋषियों, मुनियो, देवताओ एवं मनुष्यों ने सर्व प्रथम मंगल की उग्रता की शांति के लिए दही और भात का लेपन किया, दही और भात दोनो ही पदार्थ ठन्डे होते है, जिससे मंगल ग्रह की उग्रता की शांति होती हैं। इसी कारण जिन प्राणिओ की कुंडली में मंगल ग्रह अतिउग्र होता है उनको मंगल भात पूजा करवानी चाहिए, इस पूजा का उज्जैन में करवाने के कारण यह अत्यंत लाभदायी और शुभ फलदायी होती है। इसी कारण मंगल गृह को अंगारक एवं कुजनाम के नाम से भी जाने जाते है ।
अर्क विवाह क्या है?
पुरुषों के विवाह में आ रहे विलम्ब या अन्य दोषो को दूर करने के लिए किसी कन्या से विवाह से पूर्व उस पुरुष का विवाह सूर्य पुत्री जो की अर्क वृक्ष के रूप में विद्धमान है से करवा कर विवाह में आ रहे समस्त प्रकार के दोषो से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, इसी विवाह पद्द्ति को अर्क विवाह कहा जाता है।
अर्क विवाह किन पुरुषों के होने चाहिए?
जिन पुरुषो की कुंडली में सप्तम भाव अथवा बारहवां भाव क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो अथवा शुक्र, सूर्य, सप्तमेष अथवा द्वादशेष, शनि से आक्रांत हों। अथवा मंगलदोष हो अर्थात वर की कुंडली में १,२,४,७,८,१२ इन भावों में मंगल हो तो यह वैवाहिक विलंब, बाधा एवं वैवाहिक सुखों में कमी करने वाला योग होता है, ऐसे पुरुषो के माता पिता या अन्य स्नेही सम्बन्धी जनको को उस वर का विवाह पूर्व अर्क विवाह करवाना चाहिए।
कुंभ विवाह
कन्या के विवाह में आ रहे विलम्ब या अन्य दोषो को दूर करने के लिए किसी पुरुष से विवाह से पूर्व उस कन्या का विवाह कुम्भ से करवाते है क्युकी कुम्ब में भगवान विष्णु विद्धमान है से करवा कर विवाह में आ रहे समस्त प्रकार के दोषो से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, इसी विवाह पद्द्ति को कुंभ विवाह कहा जाता है।
कुम्भ विवाह किन कन्याओ का होना चाहिए
लड़की की कुंडली में सप्तम भाव अथवा बारहवां भाव क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो अथवा शुक्र, सूर्य, सप्तमेष अथवा द्वादशेष, शनि से आक्रांत हों। अथवा मंगलदोष हो अर्थात कन्या की कुंडली में १,२,४,७,८,१२ इन भावों में मंगल हो तो यह वैवाहिक विलंब, बाधा एवं वैवाहिक सुखों में कमी करने वाला योग होता है, ऐसी कन्याओ के माता पिता या अन्य स्नेही सम्बन्धी जनको को उस कन्या का विवाह पूर्व कुम्भ विवाह अवश्य करवाना चाहिए।
कुंभ एवं अर्क विवाह की आवश्यकता
मंगलदोष एक प्रमुख दोष माना जाता रहा है हमारे कुंडली के दोषों में, आजकलके शादी-ब्याह में इसकी प्रमुखता देखि जा रही है, ऐसा माना जाता रहा है की मांगलिक दोषयुक्त कुंडली का मिलान मांगलिक-दोषयुक्त कुंडली से ही बैठना चाहिए या ऐसे कहना चाहिए की मांगलिक वर की शादी मांगलिक वधु से होनी चाहिए पर ये कुछ मायनो में गलत है कई बार ऐसा करने से ये दोष दुगना हो जाता है जिसके फलस्वरूप वर-वधु का जीवन कष्टमय हो जाता है लेकिन अगर वर-वधु की आयु ३० वर्ष से अधिक हो या जिस स्थान पर वर या वधु का मंगल स्थित हो उसी स्थान पर दुसरे के कुंडली में शनि-राहु-केतु या सूर्य हो तो भी मंगल-दोष विचारनीय नहीं रह जाता अगर दूसरी कुंडली मंगल-दोषयुक्त न भी हो तो. या वर-वधु के गुण-मिलान में गुंणों की संख्या ३० से उपर आती है तो भी मंगल-दोष विचारनीय नहीं रह जाता, परन्तु अगर ये सब किसी की कुंडली में नहीं है तो नव दम्पति के सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए कन्या एवं वर का कुंभ एवं अर्क विवाह करवाना अनिवार्य सा बन जाता है।
वर-वधु दोनों की कुंडलियों में मांगलिक- दोष हो तो ?
वर-वधु दोनों की कुण्डलियाँ मांगलिक- दोषयुक्त हो पर किसी एक का मंगल उ़च्च का और दुसरे का नीच का हो तो भी विवाह नहीं होना चाहिए या दोनों की कुण्डलियाँ मांगलिक- दोषयुक्त न हो पर किसी एक का मंगल 29 डिग्री से ० डिग्री के बीच का हो तो भी मंगल-दोष बहुत हद्द तक प्रभावहीन हो जाता है अतः विवाह के समय इन बातों को विचार में रख के हम आने वाले भविष्य को सुखमय बना सकते है, इस विषय में समस्त जानकारी के लिए हमें सम्पर्क करें, हमे आपके सुखमय जीवन के अवश्य प्रयास करेंगे।
मांगलिक लोगों की खास बातें
मांगलिक होने का विशेष गुण यह होता है कि मांगलिक कुंडली वाला व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को पूर्णनिष्ठा से निभाता है। कठिन से कठिन कार्य वह समय से पूर्व ही कर लेते हैं, नेतृत्व की क्षमता, उनमें जन्मजात होती है, ये लोग जल्दी किसी से घुलते-मिलते नहीं परन्तु जब मिलते हैं तो पूर्णतः संबंध को निभाते हैं, अति महत्वकांक्षी होने से इनके स्वभाव में क्रोध पाया जाता है परन्तु यह बहुत दयालु, क्षमा करने वाले तथा मानवतावादी होते हैं, गलत के आगे झुकना इनको पसंद नहीं होता और खुद भी गलती नहीं करते।
ये लोग उच्च पद, व्यवसायी, अभिभावक, तांत्रिक, राजनीतिज्ञ, डॉक्टर, इंजीनियर सभी क्षेत्रों में विशेष योग्यता प्राप्त करते हैं।
क्यों नहीं मिलने चाहिए 36 गुण?
कुंडली के हिसाब से शादी करने वाले लोग लड़के और लड़की का गुण मिलान करते हैं। कुल 36 गुण होते हैं और इसमें से जितने गुण मिल जाएं उतना अच्छा माना जाता है। शादी के लिए कम से कम 18 गुण मिलना जरूरी होता है इससे कम गुण मिलना या 36 गुण मिलना सही नहीं माना जाता क्योंकि भगवान राम और माता सीता के 36 गुण मिले थे। लेकिन शादी के बाद सीताजी को रामजी का साथ बहुत कम मिला, उनका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहा, इसलिए मेरा मानना है कि अति हमेशा बहुत बुरी होती है चाहे वह गुण का मिलना ही क्यों न हो।
क्या मांगलिक की शादी गैर मांगलिक से हो सकती है?
मांगलिक लड़के और लड़की की शादी को लेकर समाज में बहुत सारे अंधविश्वास फैले हुए हैं। इसलिए लड़का या लड़की अगर मांगलिक हो तो माता-पिता के लिए उनकी शादी परेशानी का सबब बन जाती है। लेकिन आचार्य ची का कहना है कि लड़का और लड़की अगर मांगलिक हैं तो राहु, केतु और शनि की स्थिति पर निर्भर करता है कि शादी गैर मांगलिक से होगी या नहीं। लड़का अगर मांगलिक है तो उसकी शादी उस गैर मांगलिक लड़की से हो सकती है जिसके राहु, केतु और शनि दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें और बाहरवें भाव में बैठे हों, लेकिन अगर राहु, केतू और शनि इन भावों में नहीं हैं तो उसकी शादी मांगलिक से नहीं हो सकती। यूं तो ऐसे जातक का उपाय तो कुछ नहीं है लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि 28 साल के बाद मंगल का प्रभाव खत्म हो जाता है लेकिन मेरे गुरु कहते हैं कि यह ताउम्र रहता है।
पितृदोष क्या है?
जीवन और मृत्यु एक दूसरे के साथ साथ चलते है, मनुष्य के जन्म के साथ ही उसकी मृत्यु का समय स्थान, परिस्थित सब नियत कर दिया जाता है, फिर भी कई बार सांसारिक मोह में फंसे हुए व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसका भली प्रकार से अंतिम संस्कार संपन्न ना किया जाए, या जीवित अवस्था में उसकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो तब भी उसकी मृत्यु के बाद उसकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के लोगों के बीच ही भटकती रहती है। ऐसे व्यक्तिओ के वंशजो को उनके मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही कई बार भांति भांति के कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है और यह कष्ट पितृदोष के रूप में उनके वंशजो की कुंडली में झलकता है।
इसके अतिरिक्त अगर किसी व्यक्ति अपने हाथों से जाने या अनजाने अपनी पिता की हत्या करता है, उन्हें दुख पहुंचाता या फिर अपने बुजुर्गों का असम्मान करता है तो अगले जन्म में उसे पितृदोष का कष्ट झेलना पड़ता है
पितृ दोष के लक्षण
वैसे तो इस दोष के लक्षण भी सामान्य होते है, जिनको आप चाहे तो तर्क के आधार कुछ और ही सिद्ध कर सकते है, परन्तु वास्तव में जिसकी कुंडली में यह दोष होता है, वह जनता है की वह अपने लिए कितना प्रयास कर रहा है, फिर भी सफलता न मिलने का उसे कारण समझ नहीं आ रहा, इन समस्याओ में कुछ प्रमुख समस्याएं इस प्रकार से है, जैसे विवाह ना हो पाने की समस्या, विवाहित जीवन में कलह रहना, परीक्षा में बार-बार असफल होना, नशे का आदि हो जाना, नौकरी का ना लगना या छूट जाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय ना ले पाना, अत्याधिक क्रोधी होना
ज्योतिष विद्या में भगवान सूर्य को पिता का और मंगल को रक्त का कारक माना गया है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ये दो महत्वपूर्ण ग्रह पाप भाव में होते हैं तो व्यक्ति की कुंडली में पितृदोष है ऐसा माना जाता है
पितृदोष के कुछ ज्योतिषीय कारण भी हैं, जिस व्यक्ति के लग्न और पंचम भाव में सूर्य, मंगल एवं शनि का होना और अष्टम या द्वादश भाव में बृहस्पति और राहु स्थित हो तो पितृदोष के कारण संतान होने में बाधा आती है।
अष्टमेश या द्वादशेश का संबंध सूर्य या ब्रहस्पति से हो तो व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित होता है, इसके अलावा सूर्य, चंद्र और लग्नेश का राहु से संबंध होना भी पितृदोष दिखाता है। अगर व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु का संबंध पंचमेश के भाव या भावेश से हो तो पितृदोष की वजह से संतान नहीं हो पाती।
पितृ दोष निवारण पूजन
अगर आप यहाँ पर लिखी हुयी बातों को पढ़ रहे है तो आपको चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है, आप पंडित जी को अपनी समस्या बताये और निराकरण प्राप्त करे, पंडित जी उज्जैन में एक लंबे समय से पितृ दोष शांति पूजन करवाकर अनेको पुत्रो को इस दोष से मुक्त करवा कर उनके पूर्वजो को प्रसन्न किया है।
दुर्गासप्तशती पाठ
दुर्गाजी की महीमा:-
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्मताम्।
मां दुर्गा साक्षात् शक्ति का स्वरूप है। दुर्गा देवी सदैव देवलोक, पृथ्वीलोक एवं अपने भक्तों की रक्षा करती है। दुर्गाजी संपूर्ण संसार को शक्ति प्रदान करती है। जब कोई मनुष्य किसी संकट या विपरित परिस्थितियों में फंस जाता है एवं उनकी शरण ग्रहण करता है तो वे उसे संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करती है एवं उसे समस्याओं से छूटकारा प्राप्त करने में मदद करती है। इनका पूजन-पाठ आदि बडी विधि-विधान एवं ध्यान से करना चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार की त्रृटि होने पर हानी होने की संभावना ज्यादा रहती है। देवी दुर्गा की उपासना करने वालों को भोग एवं मोक्ष दोनो प्राप्त हो जाते है एवं दुर्गाजी साधक की सभी कामनाओं की पूर्ति करती है। मां दुर्गा की कृपा से मनुष्य दुख, क्लेश, दरिद्रता आदि से मुक्त हो जाता है।
दुर्गासप्तशती पाठ करवाने से लाभ
दुर्गासप्तशती के पाठ करवाने से परिवार में सुख-शांति आदि का वातावरण निर्मित हो जाता है।
दुर्गासप्तशती के पाठ करवाने से आकस्मिक संकट या अनहोनी की स्थिति टल जाती है।
इसके पाठ से अदालती कार्यो में सफलता मिलती है।
इसके पाठ के प्रभाव से धनहानी, ऋण आदि की निवृत्ति होती है।
आर्थिक लाभ प्राप्ति के लिए भी दुर्गासप्तशती का पाठ किया जाता है।
जीवन में यदि शत्रुओं से भय एवं समस्याएं आ रही हो तो दुर्गासप्तशती के पाठ से उनसे रक्षा होती है।
किसी अधिकारी के पद जाने की संभावना हो तो दुर्गासप्तशती पाठ से उसकी रक्षा होती है।
किसी विशेष कार्य कि सिद्धि के लिए इसका पाठ करवाना चाहिए।
दुर्गासप्तशती का पाठ करवाने से समस्त प्रकार के रोगों, भयों, दुखों कष्टों आदि से छूटकारा प्राप्त होता है।
मां दुर्गा की प्रसन्नता के लिए दुर्गासप्तशती का पाठ करवाना चाहिए।
पाठ, जाप एवं अन्य अनुष्ठान
दोष निवारणार्थ अनुष्ठान
मंगल दोष निवारण (भातपूजन), सम्पूर्ण कालसर्प दोष निवारण, नवग्रह शांति, पितृदोष शांति पूजन, वास्तु दोष शांति, द्विविवाह योग शांति, नक्षत्र/योग शांति, रोग निवारण शांति, समस्त विध्न शांति, विवाह संबंधी विघ्न शांति, नवग्रह शांति
कामना पूर्ति अनुष्ठान
भूमि प्राप्ति, धन प्राप्ति, शत्रु विजय प्राप्ति, एश्वर्य प्राप्ति, शुभ (मनचाहा) वर/वधु प्राप्ति, शीघ्र विवाह, सर्व मनोकामना पूर्ति, व्यापार वृध्दि, रक्षा कवच, अन्य सिद्ध अनुष्ठान एवं पूजन
पाठ, जाप एवं अन्य अनुष्ठान
दुर्गासप्तशती पाठ, श्री यन्त्र अनुष्ठान, कुम्भ/अर्क विवाह, गृह वास्तु पूजन, गृह प्रवेश पूजन, देव प्राण प्रतिष्ठा, रूद्रपाठ/रूद्राभिषेक, विवाह संस्कार, महामृत्युंजय जाप पूजा
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